शनि देव हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवता हैं। वे नवग्रहों (नौ ग्रहों) में से एक हैं और पौराणिक कथाओं और ज्योतिष शास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। शनि देव को भगवान शनैश्चर (Shanaischara) भी कहा जाता है।
शनि देव की प्रतिष्ठा शनि ग्रह के रूप में होती है, जिसे धार्मिक विश्व में शुभ और अशुभ ग्रहों की गणना में शामिल किया जाता है। वे कर्म, कर्मफल, अधिकार और न्याय के प्रतीक माने जाते हैं। शनि देव का वाहन क्रौंच (राजहंस) है और उनका ध्यान धारण करने के लिए नीले रंग का उपयोग किया जाता है। उनके पूजन का विशेष दिन शनिवार होता है।
शनि देव को अधिकतर दुख, कष्ट, आपत्ति और शनि की साड़े साती (साढ़ेसाती) के कारण जाना जाता है। हालांकि, उनके आशीर्वाद से सम्पत्ति, सफलता, स्थायित्व, न्याय और उच्चतम धार्मिक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
शनि देव पूजा विधि-
- शनि देव को स्वच्छंद रखें: पूजा के पहले, अपने आप को और अपने पूजा स्थान को साफ-सुथरा रखें।
- पूजा स्थल की तैयारी: एक पूजा स्थान तैयार करें, जहां आप शनि देव की मूर्ति, यंत्र, या तस्वीर स्थापित कर सकते हैं। साथ ही, आपके पास पूजा के लिए कलश, दीपक, धूप, अगरबत्ती, पुष्प, और पूजा सामग्री होनी चाहिए।
- संकल्प: पूजा की शुरुआत में संकल्प लें, जिसमें आप शनि देव की प्रसन्नता के लिए आपकी आराधना का उद्देश्य और संकल्प वक्तव्य सम्मिलित करें।
- पूजा अर्चना: शनि देव की मूर्ति के सामने बैठें और अपनी आराधना शुरू करें। पुष्प, धूप, दीप, और नैवेद्य चढ़ाएं। शनि चालीसा, शनि स्तोत्र या शनि मंत्रों का जाप करें।
- अर्घ्य: अर्घ्य देकर अपनी पूजा को पूरा करें। अर्घ्य के लिए जल और चावल का उपयोग करें.
शनि देव के मंत्रों में से कुछ प्रमुख मंत्र निम्नलिखित हैं:
- शनि बीज मंत्र: “ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः॥” (Om Praam Preem Proum Sah Shanaishcharaya Namah)
- शनि गायत्री मंत्र: “ॐ शनैश्चराय विद्महे छायापुत्राय धीमहि, तन्नो मंदः प्रचोदयात्॥” (Om Shanaishcharaya Vidmahe Chhaya Putraya Dhimahi, Tanno Mandah Prachodayat)
- शनि वेद मंत्र: “नीलाञ्जनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥” (Nīlāñjanasamābhāsaṁ raviputraṁ yamāgrajam। Chhāyāmārtaṇḍasambhūtaṁ taṁ namāmi śanaishcaram॥)
- शनि ध्यान मंत्र: “निलाञ्जनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥” (Nīlāñjanasamābhāsaṁ raviputraṁ yamāgrajam। Chhāyāmārtaṇḍasambhūtaṁ taṁ namāmi śanaishcaram॥)
शनि देव के मंत्रों का जाप करने से उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त हो सकते हैं। आप इन मंत्रों का नियमित जाप कर सकते हैं और शनि देव की कृपा को प्राप्त कर सकते हैं।
शनि देव इतिहास:
- पितृणांशु संज्ञक: शनि देव को चांद्रमा और तारागणों की पुत्री छाया के संज्ञक के रूप में जाना जाता है। इसका कारण है कि उन्हें छायापुत्र भी कहा जाता है।
- दैत्यराज वृषभ: शनि देव के पिता सूर्य और माता छाया थी। वृषभ दैत्य उनके पितामह थे। शनि देव की विशेषता है कि उन्हें तमोगुण का प्रभाव होता है और उन्हें आदित्य और वृषभ द्वारा श्रापित किया गया था।
- शनि की श्राप: शनि देव ने अपने पिता सूर्य और उनकी पत्नी छाया को श्राप दिया था क्योंकि उन्हें अनुचित रूप से देखा गया था। इसके परिणामस्वरूप, सूर्य के शनि देव के प्रति अभिमान और अपने पितामह वृषभ के प्रति द्वेष के कारण उत्पन्न हुए।
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शनि का ग्रह: शनि देव नवग्रहों (नौ ग्रहों) में से एक हैं। उनका ग्रह अर्थात शनि का अस्त है और इसे ज्योतिष में महत्वपूर्ण माना जाता है।
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