भारत और कनाडा के बीच संबंधों में हाल के दिनों में एक नई गिरावट आई है। इस गिरावट के लिए कई कारण हैं, जिनमें सिख अलगाववादियों की गतिविधियों, भारत सरकार की आलोचना और दोनों देशों के बीच मतभेद शामिल हैं।
सिख अलगाववादियों की गतिविधियां:
कनाडा में बड़ी संख्या में सिख रहते हैं, और उनमें से कुछ खालिस्तानी अलगाववादियों का समर्थन करते हैं। ये अलगाववादी भारत के खिलाफ हिंसक अभियान चलाते हैं, और कनाडा की सरकार पर उनके खिलाफ कार्रवाई न करने का आरोप लगाया जाता है।
भारत सरकार की आलोचना:
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कई बार भारत सरकार की आलोचना की है, खासकर कश्मीर मुद्दे पर। उन्होंने भारत को एक “लोकतंत्र” के रूप में नहीं देखा है, और उन्होंने भारत की आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की बात कही है।
दोनों देशों के बीच मतभेद:
भारत और कनाडा के बीच कुछ महत्वपूर्ण मतभेद भी हैं। उदाहरण के लिए, भारत परमाणु अप्रसार संधि (NPT) और समग्र परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) के सदस्य नहीं है, जबकि कनाडा दोनों संधियों का सदस्य है। इन मतभेदों ने दोनों देशों के बीच संबंधों को प्रभावित किया है।
निष्कर्ष:
भारत और कनाडा के बीच संबंधों में गिरावट से दोनों देशों के लिए नुकसान होगा। यह व्यापार और निवेश में कमी, और दोनों देशों के बीच सहयोग में कमी का कारण बन सकता है।
विभिन्न दृष्टिकोण:
भारत और कनाडा के बीच संबंधों में गिरावट के लिए कई अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। कुछ लोग मानते हैं कि यह गिरावट अस्थायी है, और दोनों देशों के बीच संबंध जल्द ही सामान्य हो जाएंगे। अन्य लोग मानते हैं कि यह गिरावट अधिक गंभीर है, और यह दोनों देशों के बीच संबंधों को लंबे समय तक प्रभावित कर सकती है।
भविष्य की संभावनाएं:
भारत और कनाडा के बीच संबंधों के भविष्य के लिए कई संभावनाएं हैं। यदि दोनों देश एक-दूसरे के साथ बातचीत और समझौता करने के लिए तैयार हैं, तो उनके बीच संबंधों में सुधार हो सकता है। हालांकि, यदि दोनों देश एक-दूसरे के साथ संघर्ष जारी रखते हैं, तो उनके बीच संबंधों में और गिरावट आ सकती है।
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