उपनिषद हिंदूओ का प्रमुख ग्रंथ है। इसमें मुख्य रूप से ईश्वर की सत्ता एवं आत्मा के सम्बंध का वर्णन विधि पूर्वक किया गया है। यह वेदों के सार का सम्मिलित रूप है। धर्म ग्रंथो के मुताबिक जो व्यक्ति उपनिषद का अध्ययन विधि पूर्वक कर लेता है उसे इस बात का बोध हो जाता है कि ईश्वर है या नहीं। आत्मा का सत्य क्या है। ब्ब्रह्मांड का आकार-प्रकार क्या है और हमारे बीच होने वाली घटनाओं का सम्बंध किससे है। आध्यायम के मुताबिक भारत के दर्शन ग्रंथो का मूल उपनिषद है। उपनिषद को कोई भी व्यक्ति आसानी से नहीं समझ सकता है। क्योंकि उपनिषद संसार के सभी जटिल तत्वों से हमें जोड़ता है।
उपनिषद क्या है –
उपनिषद संस्कृत भाषा में लिखा गया ग्रंथ है। उपनिषद शब्द संस्कृत से लिया गया है। इसका मूल अर्थ समीप बैठना है। उपनिषद के अर्थ के मुताबिक जब कोई ब्रह्म विद्या की प्राप्ति की इच्छा के साथ गुरु के समीप बैठता है तो वह उपनिषद को परिभाषित करता है। यह शब्द ‘उप’, ‘नि’ उपसर्ग तथा, ‘सद्’ धातु से निष्पन्न हुआ है। यहाँ सद् धातु के तीन अर्थ हैं: विवरण-नाश होना; गति-पाना या जानना तथा अवसादन-शिथिल होना है। उपनिषद मुख्य रूप से गुरु और शिष्य के मध्य के अटूट सम्बंध का वर्णन करता है।
कब हुई उपनिषद की उत्पत्ति-
उपनिषद भारत का पुराना धार्मिक ग्रंथ है। भारत का इतिहास तपस्या का इतिहास रहा है। धर्मात्माओं का कहना है कि जब कोई ऋषि, तपस्वी या कोई आम व्यक्ति कठोर तप करके अपने आप को ईश्वर में विलीन कर लेता था और उसे ईश्वर की ध्वनि सुनाई देने लगती थी। तप से प्राप्त परम ज्ञान से ऋषियों ने कई धार्मिक ग्रंथों की रचना की जिनमे से उपनिषद भी एक है। उपनिषद की उत्पत्ति के परिपेक्ष्य में प्रसिद्ध इतिहासकार मैक्समूलर ने कहा, उपनिषद की रचना का कालखण्ड 600 से 400 ईसा पूर्व का है।
उपनिषद का उद्देश्य-
उपनिषद आत्म चिंतन का मूल आधार है। जानकारों का कहना है कि उपनिषद का मनुष्य का आत्मीय ज्ञान बढ़ाता है। इनका मूल अर्थ व्यक्ति को सकारात्मक मार्ग पर आगे ले जाना और उसका मार्गदर्शन करना है। उपनिषद के ज्ञान से व्यक्ति अपने जीवन को एक बेहतर दिशा में आगे बढ़ाता है और अपने जीवन के मुल आधार को समझता है।
उपनिषदों की संख्या –
उपनिषदों की मूल संख्या 108 है। इसे अलग-अलग कालखण्डों में विभक्त किया गया है।
ऋग्वेदीय – 10 उपनिषद
शुक्ल यजुर्वेदीय – 19 उपनिषद्
कृष्ण यजुर्वेदीय – 32 उपनिषद्
सामवेदीय – 16 उपनिषद्
अथर्ववेदीय – 31 उपनिषद्
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