मेनका गांधी -(Maneka Gandhi History in Hindi)
मेनका गांधी भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बहू हैं। वर्तमान में वह उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर से 17 वीं लोकसभा की सदस्य हैं। वह पशु अधिकार कार्यकर्ता और पर्यावरणविद हैं। उन्होंने पारिवारिक विवादों के कारण कांग्रेस से नाता तोड़ लिया था और भाजपा परिवार का हिस्सा बनीं। उनकी राजनीति में कोई रुचि नहीं थी लेकिन पति संजय गांधी की मौत के बाद मजबूरन उन्हें राजनीति में सक्रिय होना पड़ा। मेनका गांधी की रूचि लेखन कार्य में अधिक है वह समाज हित हेतु आवाज उठाती रहती हैं।
निजी जीवन –
मेनका गांधी का जन्म 26 अगस्त 1956 को नई दिल्ली में हुआ था। इनके पति का नाम स्व० संजय गांधी है। जो इंदिरा गांधी के बेटे और जवाहर लाल नेहरू के नाती थे। इनके पिता का नाम स्व० लेफ्टीनेंट कर्नल टी० एस० आनंद है। वहीं इनकी माता का नाम स्व० अमतेश्वर आनंद है। इनका एक बेटा है। जिसका नाम वरुण गांधी है जो वर्तमान में पीलीभीत से भाजपा सांसद हैं। सोनिया गांधी इनकी जेठानी हैं जो स्व० राजीव गांधी की पत्नी हैं। वहीं राहुल गांधी व प्रियंका गांधी मेनका गांधी की जेठानी के बच्चे हैं।
मेनका गांधी ने अपने जीवन में काफी कठिन समय देखा जब यह 23 वर्ष की थीं और वरुण गांधी महज 100 दिन के थे। तो इनके पति की विमान दुर्घटना में मौत हो गई। संजय गांधी की मौत के बाद परिवार में विवाद शुरू हो गया और मेनका गांधी ने वरुण को लेकर इंदिरा का घर छोड़ दिया और गांधी परिवार टूट गया।
शिक्षा –
मेनका गांधी ने अपनी आरम्भिक शिक्षा दिल्ली के लॉरेंस स्कूल में की। इसके बाद की पढ़ाई के लिए उन्होंने लेडी श्री राम कॉलेज में प्रवेश लिया, फिर उन्होंने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में जर्मन का अध्ययन किया।
राजनीतिक जीवन –
इंदिरा गांधी का आवास छोड़ने के बाद मेनका गांधी ने अकबर अहमद के साथ मिलकर राष्ट्रीय संजय मंच की स्थापना की। इस पार्टी ने मुख्य रूप से युवा सशक्तिकरण और रोजगार पर ध्यान केंद्रित किया गया था। शुरआती दौर के चुनावों में मेनका की पार्टी ने पांच में से चार सीटों पर जीत हासिल की और यहीं से उनके राजनीतिक करियर को उड़ान मिली।
साल 1984 में उत्तरप्रदेश के अमेठी निर्वाचन क्षेत्र से आम चुनाव के लिए वह मैदान में उतरीं लेकिन राजीव गांधी के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस हार के बाद 1988 में वह जनता दल पार्टी में शामिल हो गई। वीपी सिंह की पार्टी में उन्हें महासचिव नियुक्त किया गया। 1989 के आम चुनाव में मेनका गांधी ने पीलीभीत से संसद के लिए अपना पहला चुनाव जीता और पर्यावरण मंत्री के रूप में राज्य मंत्री बनीं। जनवरी-अप्रैल 1990 में उन्हें केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया। 1991 में उन्होंने पुनः जनता दल के टिकट पर यहीं से मैदान में उतरीं लेकिन इस बार वह भाजपा प्रत्याशी से परशुराम गंगवार से हार गई।
1996 में पुनः यह जनता दल के टिकट से मैदान में उतरीं और पीलीभीत की सांसद बनीं। 1998 में इन्होंने पीलीभीत से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इस साल तक सभी को यह समझ आ चुका था कि मेनका गांधी से अपने विनम्र स्वाभाव से जनता का दिल जीत लिया है। वहीं भाजपा ने साल 2004 में मेनका गांधी को अपना प्रत्याशी बनाया और पीलीभीत से मैदान में उतार दिया। पुनः मेनका गांधी ने अपनी जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया। लेकिन साल 2009 में उन्होंने अपने बेटे वरुण गांधी की राजनीति में एंट्री करवाई और पीलीभीत से उन्हें मैदान में उतारा। वहीं स्वयं सुल्तानपुर से मैदान में उतरीं। 2009 में वरुण गांधी को यहां से जीत हासिल हुई। वहीं मेनका गांधी ने सुल्तानपुर से विजय हासिल की।
लेकिन साल 2014 में पुनः पीलीभीत में बदलाव हुआ और मेनका गांधी पुनः यहां से मैदान में उतरीं और बेटे वरुण गांधी को भाजपा ने सुल्तानपुर से अपना उमीदवार बनाया। पीलीभीत में मेनका गांधी की एकतरफा जीत हुई वहीं सुल्तानपुर में वरुण की विजय का शंखनाद हुआ। मेनका गांधी 1989 से 2014 तक 6 बार पीलीभीत लोकसभा सींट से संसद पहुंच चुकी हैं।
वहीं साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मेनका गांधी को सुल्तानपुर से और बेटे वरुण गांधी को पीलीभीत से मैदान में उतारा और दोनों ही लोगों की शानदार जीत हुई। वर्तमान में मेनका गांधी 17 वीं लोकसभा की सदस्य हैं। मेनका गांधी ने 17 वीं लोकसभा के सदस्य के रूप में 23 मई 2019 को पदभार ग्रहण किया।
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