आध्यायम- जीवन और मृत्यु इस संसार के दो सबसे बड़े सत्य हैं। व्यक्ति जिस प्रकार इस संसार मे आता है उसी प्रकार उसका जाना निश्चित है। जीवन और मृत्यु के सत्य को जानते हुए व्यक्ति मृत्यु के सत्य से भयभीत रहता है। व्यक्ति अगर इस संसार में सबसे ज्यादा किसी से भयभीत होता है तो वह मृत्यु है।
वहीं मनुष्य यह जानने के लिए सदैव उत्सुक रहता है कि आखिर मृत्यु आती है तो व्यक्ति को कैसा महसूस होता है। क्या व्यक्ति मृत्यु को पहचान सकता है। क्या किसी को यह अनुभूति हो सकती है कि मृत्यु आने वाली है।
जानें मृत्यु के वक्त व्यक्ति को कैसा लगता है-
आध्यायम के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति को मृत्यु आने वाली होती है तो उस व्यक्ति की आंखों के नीचे अंधकार छाने लगता है। व्यक्ति अपने अपनों का मोह छोड़ देता है। उसको स्वप्न आने लगते हैं। वह धीरे-धीरे अनंत काल मे खो जाता है। उसे आवाजें सुनाई देती हैं। लेकिन उसे यह अनुभव नहीं होता कि उसे कौन पुकार रहा है। धीरे-धीरे उसके कान बन्द होने लगते हैं। वह इस संसार से विरक्त हो जाता है और उसकी दशा ऐसी हो जाती है जैसे वह कोमा में चला गया हो।
व्यक्ति के शरीर पर उसके अपने हाथ पैर पटकते है। लेकिन उसके ऊपर इन सभी चीजों का कोई प्रभाव नहीं होता है। व्यक्ति अन्तकाल में पहुँच कर दूसरे गर्भ को धारण करने के लिए तैयार होने लगता है। प्रकृति उसकी इस स्थिति में मदद करती है। वह जिस प्रकार के विचार अपने मन मे सोचते हुए अनंतकाल में विरक्त होता है उसको उसी प्रकार का नया जीवन मिलता है।
मृत्यु ग्रन्थ के मुताबिक व्यक्ति को अगले जन्म में वही योनी प्राप्त होती है। जिसका वह अंतिम पल में विचार करता है। जिस योनी में उसको सुख का अनुभव होता है। उसके विचार जिस योनी के लोगों से मिलते हैं। जो जीवन भर अपने कर्मो के आधार पर अपना जीवन बनाने में लगा रहता है। व्यक्ति अपने कर्म के आधार पर नया जीवन प्राप्त करता है। अगर व्यक्ति अपने जीवन मे ईश्वर की आराधना करता है और अंतिम समय मे ईश्वर का ध्यान करते हुए अनन्तकाल में विरक्त होता है तो उस व्यक्ति को नया जीवन मिलता है और उसके कर्म उसकी योनी का निर्धारण करते हैं।
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