- हनुमान – विशाल और टेढी ठुड्डी वाले ।
- श्रीप्रद – शोभा प्रदन करने वाले ।
- वायुपुत्र – वायु के पुत्र
- रुद्र – जो रुद्र के अवतार हैं (हनुमान जी एकादश रुद्र हैं)
- अनघ – पाप से रहित
- रामधारी – राम को हृदय में धारण करने वाले
- अजर – वृद्धावस्था से रहित
- अमृत्य – मृत्यु से रहित
- वीरवीर – वीरों में अग्रणी
- ग्रामवास – गाँवों में निवास करने वाले
- जनाश्रय- समस्त जनों को आश्रय प्रदान करने वाले
- धनद -धन धान्य देनेवाले
- निर्गुण -सतोगुण,रजोगुण एवं तमोगुण से रहित ।
- अकाय -भौतिक देह से रहित ।
- वीर – पराक्रमी ।
- निधिपति – नवनिर्धायों के स्वामी ।
- मुनि – वेद शास्त्रों के गूहार्थ के ज्ञाता ।
- पिंगाक्ष – पीले-पीले नेत्रों वाले ।
- वरद – मनोवांछित वरदान देने वाले ।
- वाग्मी – कुशल वक्ता ।
- सीताशोकविनाशन – सीता जी के शोक को मिटाने वाले ।
- शिव – मंगलमय ।
- सर्व -सर्वस्वरूप ।
- पर – प्रकृति से भी परे ।
- अव्यक्त -अव्यक्त स्वरूपवाले ।
- रसाधर- पृथ्वी को धारण करने वाले ।
- पिंगरोम -पीले रोम वाले ।
- पिंगकेश -पीले केशों वाले ।
- श्रुतिगम्य: -जो श्रुतियों द्वारा जानने योग्य है ।
- सनातन -सदैव विद्यमान रहने वाले ।
- अनादि – आदि से रहित ।
- विश्वहेतु -जगत् के मूल कारण ।
- निरामय -नीरोग ।
- आरोग्यकर्ता – आरोग्य प्रदान करने वाले ।
- विश्वेश- विश्व के ईश्वर ।
- विश्वनाथ -संसार के स्वामी ।
- हरीश्वर -वानरों के स्वामी ।
- भर्ग – तेज स्वरूप ।
- रामभक्त – राम के भक्त ।
- कल्याणप्रकृति – कल्याण करना जिनका सवभाव है ।
- स्थिर -पर्वत के समान अचल ।
- विश्वम्भर – विश्व का भरण –पोषण करनेवाले ।
- विश्वमूर्ति -विश्व जिनकी मूर्ति है।
- विश्वाकार – जो सर्वस्वरूप हैं ।
- विश्वप – जो विश्व का पालन करते हैं।
- विश्वात्मा -जो विश्व की आत्मा हैं।
- विश्वसेव्य -सारे विश्व के सेवनीय।
- विश्वहर – विश्व के हर्ता ।
- रवि – सुर्यस्वरूप ।
- विश्वचेष्ट – विश्व के हित में चेष्टा करनेवाले ।
- कलाधर – कलाओं को धारण करनेवाले ।
- प्लवंगम – उछलते- कूदते चलनेवाले ।
- कपिश्रेष्ठ – वानरों में श्रेष्ठ ।
- ज्येष्ठ – महान् ।
- वैद्य – भवरोग के चिकित्सक ।
- वनेचर – सीताजी की खोज में वन-वन भटकने वाले ।
- बाल – बालक के समान निश्चल अथवा बालरूप हो सुरसा के मुँह में प्रवेश करनेवाले ।
- वृद्ध – बढ़कर पर्वताकार होनेवाले ।
- युवा – सदा तरुण स्वरूप ।
- तत्वम् – संसार के कारण स्वरूप ।
- तत्त्वगम्य -तत्वरूप में जानने योग्य ।
- सखा – सबके सखा ।
- अज – अजन्मा ।
- अञ्जनासूनु – माता अञ्जना के पुत्र ।
- अव्यग्र – कभी व्यग्र न होनेवाले ।
- धराधर – पृथ्वी को धारण करनेवाले- पर्वताकार ।
- भू – पृथ्वीलोकस्वरूप ।
- भुव – भुवर्लोकस्वरूप ।
- स्व – स्वर्गलोकस्वरूप ।
- महर्लोक – महर्लोकस्वरूप ।
- जनलोक – जनलोकस्वरूप ।
- अव्यय: – अविनाशीस्वरूप ।
- सत्यम्:- संतों के लिए हितकर ।
- ॐकारगम्य: – ॐकारके द्वारा प्राप्त होनेवाले ।
- प्रणव: – ॐकारस्वरूप ।
- व्यापक: – सर्वव्यापी ।
- अमल: – दोषरहित ।
- रामेष्ट:- जिनके श्रीराम इष्टदेव हैं ।
- फाल्गुन प्रिय: -जो अर्जुन के प्रिय हैं ।
- गोष्पदीकृतवारीश: – समुद्र को जलपूरित गोपद के समान लाँघनेवाले ।
- पूर्णकाम: -जिनकी सारी कामनाएँ पूर्ण हैं।
- धरापति: -पृथ्वी के स्वामी ।
- रक्षोघ्न: -राक्षसों को मारनेवाले ।
- पुण्डरीकाक्ष: – श्वेत कमल के समान नेत्रवाले ।
- शरणागतवत्सल: – शरण में आए हुये पर कृपा करनेवाले ।
- जानकीप्राणदाता: – जानकीको जीवन प्रदान करनेवाले ।
- पीतवासा: -पीला वस्त्र धारण करनेवाले ।
- दिवाकर समप्रभ: – सूर्य के समान तेजस्वी ।
- देवोद्यानविहारी: – देवताओं के नंदन-वन में विहार करने वाले ।
- देवताभयभञ्जन: – देकताओं के भय को नष्ट करनेवाले ।
- भक्तोदयो: – भक्तों की उन्नति करनेवाले ।
- भक्तलब्ध: – भक्तों के दवारा प्राप्त ।
- भक्तपालन तत्पर: – भक्तों की रक्षा में तत्पर ।
- द्रोणहर्ता:- द्रोणाचलको उखाड़कर लानेवाले ।
- शक्तिनेता – शक्तियों के संचालक ।
- अक्षघ्न: – अक्षकुमार को मारनेवाले ।
- रामदूत: – भगवान श्री रामचंद्र के दूत ।
- अहेतु: – कारणरहित ।
- प्रांशु: – बहुत उन्नत ।
- विश्वभर्ता: – विश्व का भरण पोषण करनेवाले ।
- जगद्गुरु: – सारे संसार के गुरु ।
- जगन्नेता: – संसार के नेता ।
- जगन्नाथ: – संसार के स्वामी ।
- जगदीश: – जगत् के ईश ।
- वायुपुत्र: – वायु के पुत्र ।
- परब्रह्मपुच्छ: – जिनका परब्रह्म आधार है ।
- रामेष्टकारक: – जो श्रीरामके अभीष्ट कार्य को सिद्ध करते हैं ।
- वानरेश्वर: -वानरों के स्वामी ।
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