Navratri 2023: माँ दुर्गा को समर्पित नवरात्रि का पावन पर्व आज से शुरू हो रहा है। मान्यता है कि नवरात्रि के नौ दिनों में जो व्यक्ति भक्ति पूर्वक माता दुर्गा की पूजा-अर्चना करता है। घर में कलश स्थापना करता है और नियमित रूप से दुर्गा चालीसा का पाठ करता है। उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है। घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और व्यक्ति का मन एक अनोखी ऊर्जा के साथ चमकने लगता है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक पुरातन काल में माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ऋषि -मुनि वर्षों तक दुर्गा चालीसा का पाठ करते थे, उनकी विधि पूर्वक आराधना करते थे। ऐसा करने से उनको माता रानी का आशीर्वाद मिलता था। वह दीर्घायु और रोग मुक्त होते थे।
मान्यता यह भी है कि यदि कोई व्यक्ति मन वंचित फल की प्राप्ति चाहता है तो उसे रोजाना माँ दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि माँ दुर्गा बेहद दयालु हैं, समस्त प्राणी माँ दुर्गा के बच्चे हैं। जो भी माँ के पास अपने दुःख-दर्द लेकर जाता है। माता रानी उसके सभी कष्ट हर लेती हैं और उसके जीवन को खुशियों से भर देती हैं। वही आज हम आपको इस लेख में सम्पूर्ण दुर्गा चालीसा और माँ दुर्गा के प्रभावी मंत्रो के विषय में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं-
दुर्गा देवी के सबसे प्रभावी मंत्र:
हे गौरी शंकरधंगी ! यथा तवं शंकरप्रिया,
तथा मां कुरु कल्याणी ! कान्तकान्तम् सुदुर्लभं
“दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता॥”
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥
सम्पूर्ण दुर्गा चालीसा:
नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥१॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी ।
तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥२॥
शशि ललाट मुख महाविशाला ।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥३॥
रूप मातु को अधिक सुहावे ।
दरश करत जन अति सुख पावे ॥४॥
तुम संसार शक्ति लै कीना ।
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥५॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥६॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी ।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥७॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥८॥
रूप सरस्वती को तुम धारा ।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥९॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा ।
परगट भई फाड़कर खम्बा ॥१०॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥११॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।
श्री नारायण अंग समाहीं ॥१२॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा ।
दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥१३॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।
महिमा अमित न जात बखानी ॥१४॥
मातंगी अरु धूमावति माता ।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥१५॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी ।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥१६॥
केहरि वाहन सोह भवानी ।
लांगुर वीर चलत अगवानी ॥१७॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै ।
जाको देख काल डर भाजै ॥१८॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला ।
जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥१९॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत ।
तिहुँलोक में डंका बाजत ॥२०॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे ।
रक्तबीज शंखन संहारे ॥२१॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी ।
जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥२२॥
रूप कराल कालिका धारा ।
सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥२३॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब ।
भई सहाय मातु तुम तब तब ॥२४॥
अमरपुरी अरु बासव लोका ।
तब महिमा सब रहें अशोका ॥२५॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।
तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥२६॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें ।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥२७॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।
जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥२८॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥२९॥
शंकर आचारज तप कीनो ।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥३०॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥३१॥
शक्ति रूप का मरम न पायो ।
शक्ति गई तब मन पछितायो ॥३२॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी ।
जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥३३॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥३४॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो ।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥३५॥
आशा तृष्णा निपट सतावें ।
मोह मदादिक सब बिनशावें ॥३६॥
शत्रु नाश कीजै महारानी ।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥३७॥
करो कृपा हे मातु दयाला ।
ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥३८॥
जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥३९॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।
सब सुख भोग परमपद पावै ॥४०॥
देवीदास शरण निज जानी ।
कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥४१॥
॥ दोहा ॥
शरणागत रक्षा करे, भक्त रहे नि:शंक ।
मैं आया तेरी शरण में, मातु लिजिये अंक ॥
दुर्गा चालीसा वीडियो: