भारत विभिन्न संस्कृतियों का देश है। यहां अलग-अलग धर्म के लोग एकता के साथ रहते हैं। भारत के अगर हम धार्मिक स्थलों की बात करें तो यह अपना एक अनोखा इतिहास स्वयं में समेटे हुए हैं। वहीं आज हम आपको चोल राजा द्वारा बनवाएं गए एक मंदिर के विषय में बताने जा रहे हैं जो बेहद अनोखा है और मान्यता है कि जो व्यक्ति इस मंदिर में दर्शन करने आता है उसके सभी दुःख दूर हो जाते हैं।
जानें कब बना मंदिर-
यह मंदिर बृहदेश्वर भगवान को समर्पित है। इसका निर्माण चोल सम्राट ने 1010 ईस्वी में करवाया था। यह मंदिर तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित है। मंदिर की खासियात है कि इसमें भगवान की प्रतिमा नृत्य की मूर्ति में स्थित है जिसे नटराज के नाम से जाना जाता है। बृहदेश्वर भगवान के मंदिर को राजेश्वर मंदिर, राजराजेश्वरम एवं पेरिया कोविल के नाम से जाना जाता है। मंदिर को यूनिस्को धरोहर में शामिल किया गया है। अपने सांस्कृतिक मूल्यों के कारण यह मंदिर पूरे विश्व में काफी विख्यात है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर को बनाने में 5 वर्ष का समय लगा था।
मंदिर की डिजाइन –
मंदिर का निर्माण राजस्वी आकर में हुआ है। यह एक महल की तरह प्रतीत होता है। मंदिर को बनाने में 130,000 टन से अधिक ग्रेनाइट का उपयोग किया गया है। मंदिर द्रविड़ वास्तुकला शैली पर आधारित है। मंदिर के गुम्बद का वजन तकरीबन 80 टन से अधिक है। मंदिर में स्थापित नंदी की मूर्ति 25 टन की है। मंदिर की ऊंचाई 66 मीटर, मंदिर की लम्बाई 240. 90 मीटर की है। वहीं मंदिर 122 मीटर चौंड़ा है।
क्यों चोल सम्राट ने करवाया था बृहदेश्वर भगवान का मंदिर –
इतिहास के मुताबिक चोल सम्राट भगवान शिव के आराधक थे। वह अपने दिन की शुरुआत भगवान शिव की पूजा-अराधना के साथ करते थे। चोल सम्राट ने ईश्वर के प्रति अपने प्रेम और आस्था के कारण बृहदेश्वर भगवान के मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर 1000 साल पुराना है। भारत के सबसे पुराने मंदिरों की लिस्ट में बृहदेश्वर भगवान के मंदिर को शामिल किया गया है।
बृहदेश्वर भगवान के मंदिर की विशेषताएं –
बृहदेश्वर भगवान के मदिर की प्रमुख विशेषता है कि दोपहर के वक्त इस मंदिर में धुप के कारण किसी की भी छाया नहीं बनती है। यह मंदिर वास्तुकला का उत्तम उदाहरण है। मंदिर का गुम्बद इस प्रकार बना हुआ हैकि सूर्य इसके चारो ओर घूमता है। वहीं इस मंदिर के पिलर को किसी अन्य वस्तु से नहीं चिपकाया गया है। अगर आप इस मंदिर को ध्यान से देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि मंदिर में लगे पत्थर को काटकर एक दूसरे के साथ फिक्स किया गया है जिन्हें आसानी से नहीं अलग किया जा सकता है। यह मंदिर दुनिया के सबसे ऊँचे मंदिर के रूप में जाना जाता है।